दोस्तों आज भारत के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी का नाम हर तरफ जोरो से सुनाई दे रहा है परंतु क्या आप जानते हैं कि क्रिकेट से पहले उनकी लाइफ कैसी थी? उनके फर्स्ट कोच कौन थे? शमी आज वर्ल्ड कप 2023 तक कैसे पहुंच सकें हैं? आज हम इन्हीं सब चीजों के बारे में आपको बताएंगे।
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के Local Tournament में गेंदबाजी में तौसीफ अली नाम के एक फास्ट बॉलर का काफी नाम था। तौसीफ फास्ट बॉलिंग का उम्दा हुनर रखते थे। इस वजह से उनका नाम पूरे क्षेत्र में मशहूर था। कई लोग उन्हें क्लब में जाने और ट्रेनिंग लेने के लिए भी कहते थे, लेकिन तौसीफ अली के पास किसी डोमेस्टिक टूर्नामेंट के लिए अथवा राष्ट्रीय स्तर की तैयारी के लिए न तो पैसा था और न ही उनकी उम्र बची थी।
एक वक्त ऐसा आया जब तौसीफ ने स्वीकार लिया कि उनके मुकद्दर में खेती किसानी ही लिखी है, क्योंकि प्रोफेशनल क्रिकेट के लिए काफी देर हो चुकी थी। अब तौसीफ अली इंडियन टीम में फ़ास्ट बॉलर का ड्रीम लिए अपनी आम जिंदगी में वापस लौट आए। कुछ समय बाद उन्होंने शादी कर ली, और खेती करके परिवार संभाल लिया। उनके पाँच बेटे हुए, जिनमें से सभी में क्रिकेट के प्रति खासा उत्साह था। तौसीफ अपने बच्चों को उन गलतियों से दूर रखना चाहते थे, जो उनसे हो चुकी थी। उन्हें अपनी गलतियों का पता था। क्योंकि उन्होंने कई गलतियों से ही क्रिकेट सीखा था।
पंद्रह साल तक शमी को पिता ने दी ट्रेनिंग
आपको बता दें कि मोहम्मद शमी के पिता तौसीफ अली मोहम्मद शमी के फर्स्ट कोच थे। उन्होंने पंद्रह साल तक अपने बेटे को गेंदबाज बनाने के लिए स्वयं ट्रेन किया, और अपने अनुभवों से अपने दूसरे बच्चों को भी राह दिखाई। उन्होंने अपने इस बच्चे से बस इतना मांगा कि वह अपनी प्रतिभा को दिखाए और उनका सपना पूरा करें। बच्चे को बस आगे बढ़ना था, और वो मुकाम प्राप्त करना था। जिसको प्राप्त करने का सपना उसके अब्बू अक्सर देखा करते थे।
मुरादाबाद क्रिकेट एकेडमी में मिली पहली ट्रेनिंग
पंद्रह साल तक तौसीफ अली अपने बेटे को ट्रेनिंग देते रहे उसके बाद, वे अपनी सारी सेविंग्स को इकट्ठा करके अपने बेटे को मुरादाबाद की एक क्रिकेट एकेडमी में कोच बदरुद्दीन के पास लेकर गए। बदरुद्दीन ने बेटे की गेंदबाजी देखकर तुरंत ही उसे अपने साथ रख लिया। इस लड़के में इतना जुनून था कि जब भी कभी ट्रेनिंग के दौरान कोई मैच समाप्त होता, तो वह पुरानी गेंदों से रिवर्स स्विंग की प्रैक्टिस करने के लिए खड़ा हो जाता, और इस पर जब उससे सवाल किया गया, तो उसने बताया कि इससे मैं अपनी गेंदबाजी में सुधार करता हूं।
पक्षपात के चलते नहीं मिला था चयनकर्ताओं का सपोर्ट
बदरुद्दीन को पूरा विश्वास था कि इस लड़के को अंडर 19 टीम के ट्रायल में सिलेक्टर तुरंत उठा लेंगे। इसी आशा#के साथ शमी ने ट्रायल दिया। लेकिन सिलेक्टर ने पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए शमी को मौका नहीं दिया गया। बदरुद्दीन को कहा गया कि अगले साल इसे फिर लेकर आएं, लड़के में जान है। लेकिन बदरुद्दीन ने लड़के के पिता तौसीफ से कहा कि वे उसे कोलकाता भेजें। वहां वह क्लब क्रिकेट खेलेगा तो आज नहीं तो कल वह स्टेट टीम में शामिल हो ही जाएगा । तौसीफ के पास इस जुए को खेलने के लिए एक ही मुख्य कारण था – उनके बेटे की प्रतिभा और उसके जुनून पर उनका भरोसा।
कोलकाता जाकर खुला सफलता का द्वार
अब कोलकाता आने के बाद, शमी एक क्रिकेट क्लब में शामिल हो गए, लेकिन स्टेट और नेशनल टीम का रास्ता अभी भी दूर ही था। जुनून के चलते वह बंगाल तो पहुँच गया, पर जुनून न तो पेट भरता है, न ही सिर पर छत रखता है। लेकिन संसार में इस प्रकार के लोगों की कमी बिल्कुल नहीं है। जो जुनून और कठिनाइयों के बावजूद अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर लोगों को तलाश कर रहे होते हैं, जैसे देवव्रत दास, जो उस समय बंगाल क्रिकेट के सहायक सचिव थे। वह इस लड़के की क्षमता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कोलकाता में बेघर उस लड़के को अपने साथ रहने के लिए बुला लिया। फिर उन्होंने बंगाल के एक चयनकर्ता बनर्जी को उस लड़के की प्रतिभा पर निगाह रखने को कहा।
बनर्जी ने जब उस लड़के को गेंद फेंकते हुए देखा तो उसे बंगाल की अंडर-22 टीम में चयनित कर लिया। देवदत्त दास से जब इस लड़के पर इतनी मेहरबानी का कारण पूछा गया। तो उन्होंने कहा, “इस लड़के को धन नहीं चाहिए, उसे बस एक चीज चाहिए, जो है पिच के आखिरी में लगे स्टंप पर बॉल लगने की आवाज। वह लड़का सिर्फ इस साउंड को सुनकर ही सांस लेता है और स्टंप से गेंद के टकराने की आवाज इस लड़के को इतनी पसंद है कि उसके अधिकतर विकेट बोल्ड आउट ही है।”
सौरभ गांगुली के साथ बॉलिंग से बनी बात
यहाँ से निकलकर शमी मोहन बागान क्लब में शामिल हो गए, जहां उन्होंने ईडन गार्डन के नेट्स पर सौरव गांगुली के साथ गेंदबाजी की। और लोगों की तरह सौरभ भी इसकी गेंदबाजी देखकर खासे इम्प्रेस हो गए और उनकी सिफारिश पर शमी को बंगाल की 2010–11 की रणजी टीम में चयनित कर लिया गया। तीन-चार वर्षों की मेहनत और संघर्ष के बाद, 6 जनवरी 2013 को, इस लड़के को पाकिस्तान के खिलाफ खेलने का मौका मिला, जिससे उसने भारतीय टीम में डेब्यू किया।
इसके बाद से, शमी लगातार टोपी नंबर 195 का रुतबा बढ़ाते जा रहे है। हजारों दर्शकों के सामने जब वह दम लगाकर दौड़ना शुरू करते है, तो उनमें बस एक ही लालच रहता है – गेंद के स्टंप में टकराने के साउंड को सुनने का। जीवन के सभी अच्छे बुरे मोड़, बड़ी समस्याओं के बावजूद, आज भी जब अमरोहा के तेज गेंदबाज तौसीफ अली का बेटा मोहम्मद शमी जर्सी नंबर 11 पहनकर दौड़ना शुरू करता है तो, उसके पीछे उसके पिताजी का सपना, कोच बदरुद्दीन की मेहनत, और देवदत्त दास की मानवीयता, ये सभी एक साथ दौड़ते है।