सफेद दाग एक इस प्रकार की मर्ज है जो किसी तरह का नुकसान तो नहीं पहुंचाती, मगर सुंदरता पर छाया डाल देती है। आज हम इसके मुख्य कारण और उनके निवारण के संबंध में बता रहे हैं।
त्वचा का किसी जगह पर अकस्मात या जन्म से सफेद रूप ले लेना एक मर्ज है। इसे सफेद दाग, ल्यूकोडर्मा और विटिलिगो आदि नामों से भी जानते है। परेशानी तब होती है जब ये दाग दिखने वाले भागों मसलन, हाथ, चेहरे, पाँव की अंगुलियों और गर्दन आदि पर होते हैं। सफेद दाग से सुंदरता में तो कमी आती ही है, इसको लेकर सामाजिक भ्रामकताएं भी हैं। कुछ व्यक्ति इसे कोढ़ समझने की भी गलती कर बैठते हैं। कुछ व्यक्तियों को यह डर होता है कि यह संपर्क में आकर फैलने वाला है, अत: लोग इस प्रकार के इंसान के सम्पर्क में आने से बचते हैं। मगर ये सब भ्रामकताएं हैं। यह एक बीमारी अवश्य है मगर इससे कोई क्षति नहीं होती है। न ही यह संपर्क में आकर फैलने वाली है।
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दो प्रतिशत लोग चपेट में
दुनियाभर में हुए सर्वेक्षणों में बोला गया है कि सफ़ेद दाग से पीड़ितों की तादाद दो प्रतिशत के लगभग है। इसके अनुसार देश में करीब 2.5 करोड़ व्यक्ति इसकी गिरफ्त में हैं। यह काफी बड़ी संख्या है। यह बॉडी के किसी भी भाग पर हो सकता है। यदि वह भाग कपड़ों से छुपा रहता है, तो दूसरे लोगों को इसका पता नहीं लगता। अत: सब का रोग पता नहीं लगता। इस रोग के प्रति समाज में फैली तरह-तरह की भ्रामकताओं की वजह से प्राय: व्यक्ति किसी ट्रेंड डॉक्टर के पास जाने के स्थान पर गली-मोहल्लों के हकीमों के चक्कर में आ जाते हैं। इससे रोग तो सही नहीं होता, धन दौलत की और ज्यादा बर्बादी होती है।
क्यों होता है यह रोग?
यह स्व-प्रतिरक्षित विकार है। हमारी बॉडी में अनगिनत सेल्स होती हैं। इनके अलग अलग काम होते हैं। इस प्रकार की ही कुछ सेल्स होती हैं जिनका काम स्किन को रंगत देना होता है। इन्हें कलर सेल्स अथवा मेलानोसाइट्स बोलते हैं। इन्हीं कोशिकाओं के कारण त्वचा को विशेष तरह की रंगत मिलती है। मेलानोसाइट्स के साथ ही एक अन्य कोशिका मैक्रोफेजेज भी एक्टिव रहती हैं जो इन्हें नेचुरली प्रतिरोधी क्षमता देती हैं। पर कभी कभी बॉडी में ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं कि मैक्रोफेजेज सेल्स मोनोसाइट्स सेल्स को पहचानने से मना कर देती हैं जिससे उनकी प्रतिरोधी क्षमता कम होना शुरू हो जाती है एवं वे अक्रिय होना शुरू हो जाती हैं। इससे स्किन कलर समाप्त होना प्रारम्भ हो जाता है। कभी यह प्रक्रिया एक ही भाग पर स्थिर रह जाती है तो कभी-कभी दूसरे भागों में भी फैलना शुरू हो जाती है।
क्या है उपचार?
दवाओं से यद्यपि मैक्रोफेजेज सेल्स की इम्यूनिटी इंक्रीज करने की चेष्टा की जाती है जिसके असर से मेलानोसाइट्स कोशिकाएं पुन: एक्टिव होने लगती हैं। मगर बहुत बार दवा कारगर नहीं रहती है या कुछ समय के उपरांत सही हो चुका दाग पुनः सक्रिय हो जाता है अथवा किसी दूसरे भाग में एक्टिव हो जाता है। अत: दवा के साथ साथ सर्जरी का विकल्प भी प्रयोग करा जाता है।
स्किन ग्राफ्टिंग है शानदार इलाज
आजकल सफ़ेद दाग को समाप्त करने के लिए Skin Grafting को बहुत आजमाया जा रहा है। इसमें एक प्रकार से स्किन को सफेद दाग के ऊपर ट्रांसप्लांट किया जाता है। मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल सहित सभी सरकारी चिकित्सालयों में यह फैसिलिटी नि:शुल्क मौजूद है। चिकित्सालयों में मेडिसिन और सर्जरी दोनों तरह से उपचार के विकल्प उपलब्ध हैं। मोटे तौर पर दो तरह की Skin Grafting की जाती है।
एक पंच ग्राफ्टिंग
इसमें मरीज की बॉडी से ही स्किन के स्मॉल पीस लेकर सफ़ेद दाग वाली जगह पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पर निरोपित कर दिए जाते हैं। इनका आकार तीन से चार मिमी के लगभग होता है। कुछ टाइम बाद ये स्किन के पीस एक्टिव होने लगते हैं और सफ़ेद दाग वाले प्लेस को पूरी तरह से ढक लेते हैं। एक वक्त के बाद ये नॉर्मल स्किन से मिल जाते एवं उसी की रंगत में रंग जाते हैं। यह क्रिया सबसे अधिक प्रचलित है। यह नॉर्मल सी सर्जरी है मगर स्किन को रंग परिवर्तित करने में तीन से चार माह तक लग जाते हैं।
स्पिलिट ग्राफ्टिंग
इसमें स्किन का एक पूरा टुकड़ा सफ़ेद दाग वाले प्लेस पर पेस्ट कर दिया जाता है। जितना ज्यादा बड़ा दाग होता है, उसके बराबर ही बड़ा पीस लिया जाता है। तीन-चार माह में वह स्किन के साथ मिल जाता है और पता भी नहीं चलता है कि वहां नई स्किन निरोपित की गई है। एक जरूरी बात और ग्राफ्टिंग के लिए त्वचा की भीतरी पर्त से स्किन ली जाती है। ऊपरी स्किन प्रयोग नहीं की जा सकती है। स्किन की कई परतें होती हैं। मगर ग्राफ्टिंग केवल उसी स्थिति में की जाती है जब सफ़ेद दाग स्थिर हो। अर्थात वह एक ही प्लेस पर हो और फैल नहीं रहा हो। एक वर्ष में उसके आकार में बदलाव नहीं देखा गया हो। अगर वह फैल रहा है तो सबसे पहले उसे दवाओं से फैलने से रोका जाता है, और उसके पश्चात ही ग्राफ्टिंग का ऑप्शन प्रयोग किया जाता है।
क्रीम भी है प्रभावी
लेकिन जो व्यक्ति आपरेशन नहीं करवाना चाहते हैं एवं दवा भी नहीं खाना चाहते हैं उनके लिए इससे निजात के अन्य भी अस्थाई विकल्प हैं। इन दिनों सफेद दाग को छुपाने के लिए इस प्रकार की क्रीमें आ गई हैं जो सफ़ेद दाग वाले भाग पर लगा दी जाए तो फिर पता ही नहीं लगता कि वहां पर कोई ऐसा दाग भी था।
साउथ के सदाबहार एक्टर रजनीकांत को भी यह मर्ज है। उनके होंठों में सफ़ेद दाग का इंफेक्शन है। मगर वह इस प्रकार की क्रीमें लगाते हैं जिससे किसी इंसान को पता ही नहीं लग पाता है। ये क्रीमें कॉस्मेटिक स्टोर पर भी मौजूद हैं। मगर डॉक्टर की राय से लेना अच्छा रहता है। यह अवश्य याद रखिएगा कि इनका प्रभाव एक दिन तक ही रहता है।
जेनेटिक रीजन
सफेद दाग का रोग जेनेटिक भी होता है। अगर माता-पिता में से कोई एक भी इससे पीड़ित हो तो पैदा होने वाले नवजात में इसके इंफेक्शन का रिस्क 20 प्रतिशत तक होता है। अगर मां-बाप दोनों पीड़ित हों तो यह रिस्क 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इसलिए अच्छा यही है कि बीमारी को छिपाएं नहीं, अपितु उसका उपचार कराएं।
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Yh cream kon si Hoti he
Yh cream kon si Hoti he jo dag ko dhk deti hai .or ye skin grafting kon se hospital me hoti he