गोवर्धन की पूजा वैसे तो पूरे देश में ही श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं मगर उत्तरी भारत में विशेषतया मथुरा, नंदगांव, गोकुल, वृंदावन, बरसाना इत्यादि स्थानों पर इस त्यौहार की प्रतिष्ठा ज्यादा है। मान्यता के अनुसार, यहां खुद प्रभु श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को गोवर्धन की पूजा करने की प्रेरणा दी थी एवं देवराज इंद्र के घमंड को दूर किया था। इस त्यौहार को भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न तरीके से मनाते हैं। गोवर्धन को अन्नकूट का त्यौहार भी कहते है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश इत्यादि प्रदेशों में श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाए जाते हैं तो वहीं दूसरी ओर, दक्षिण भारत के भागों में इस दिन राजा बलि की पूजा का प्रावधान है।
1- सालभर को हो जाते हैं सुखी
ऐसा मानना है कि अगर आज के दिन कोई पीड़ित है तो पूरे वर्ष वह पीड़ित रहेगा, अत: गोवर्धन पूजा अर्थात अन्नकूट पूजा को पूरी श्रद्धा से मनाना चाहिये। इस दिन जो साफ मन से वासुदेव श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान और पूजन करता है वह पूरे वर्ष खुश और संपन्न बना रहता है।
2- इस कारण होती है गाय की पूजा
दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन की पूजा-अर्चना की जाती है। बहुत सी जगहों पर व्यक्ति इसे अन्नकूट नाम के द्वारा भी जानते हैं। शास्त्रों के मुताबिक गाय को लक्ष्मी देवी का रूप समझा गया है। इसका कारण है जैसे लक्ष्मी देवी सुख और संपन्नता देती हैं, उसी भांति गाय भी हमें सेहत रूपी दौलत देती हैं। इस वजह से व्यक्ति गाय के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करते हुए गोर्वधन की पूजा में प्रतीक के तौर पर गाय को पूजते हैं। इस दिन राजा बलि, पूजन, मार्गपाली, अन्नकूट इत्यादि त्यौहार भी मनाएं जाते हैं।
3- इस प्रकार से होती है गोवर्धन पूजा
इस दिन घर के आंगन में गौमाता के गोबर से गोवर्धन पहाड़ बनाकर जल, रोली, मौली, फूल, चावल, दही तथा तेल का दीया जलाकर पूजा अर्चना करते हैं एवं फिर उसकी परिक्रमा करते हैं। कुछ जगहों पर गोवर्धन की प्रतिमूर्ति बनाकर भी पूजते हैं। इसके साथ ही इस दिन आप गाय, बैल इत्यादि पशुओं को चंदन धूप एवं पुष्प माला इत्यादि से पूज सकते हैं। इस दिन खासतौर पर गौमाता की पूरे विधान से पूजा एवं आरती की जाती है। इसके पश्चात भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन नाथ के लिए भोग और नैवेद्य में रोज के नियमित पद्धार्थ के अतिरिक्त यथाशक्ति अनाज से बने कच्चे-पक्के भोग, फूल, फल के साथ 56 भोग लगाए जाते है। बाद में सभी सामग्री को स्वयं के परिवार, दोस्तों में प्रसाद के रूप में वितरित करके स्वयं लेते हैं।
5- कुछ इस तरह से शुरू हुई गोवर्धन की पूजा
शास्त्रों के मुताबिक अन्नकूट अथवा गोवर्धन पूजा मनाएं जाने की परंपरा की स्टार्टिंग भगवान श्री कृष्ण के अवतार के बाद से द्वापर युग में हुई थी। गोवर्धन की पूजा से पूर्व ब्रज में देवराज इंद्र की पूजा-अर्चना होती थी, लेकिन प्रभु कृष्ण ने गोकुल के लोगों को समझाया कि इंद्र हमें कोई फायदा नहीं पहुँचाते हैं बजाय वर्षा कराना उनका कार्य है, वह स्वयं का कार्य रहे हैं। इसके स्थान पर गोवर्धन की पूजा-अर्चना करें जो हमारे गौ-धन का संवर्धन और संरक्षण करता है, जिससे हम सभी का पर्यावरण भी शुद्ध रहता है। इस प्रकार की मान्यता है कि प्रभु श्री कृष्ण चाहते थे कि ब्रजवासी गौ-धन और पर्यावरण के महत्व को जानें एवं उसकी सुरक्षा करें।
6- इस वजह से गोवर्धन को श्रीकृष्ण का रूप मानते है।
गोवर्धन ब्रजप्रांत में स्थित एक छोटी पहाड़ी है, मगर इसे पहाड़ों का राजा अर्थात् गिरिराज के रूप में जानते है। यह इस वजह से भी महत्व वाला हैं क्योंकि इसे प्रभु श्रीकृष्ण के टाइम के एकमात्र स्थायी और स्थिर अवशेष का दर्जा हासिल है। ऐसा मानते है कि उस वक्त की यमुना भी टाइम-टाइम पर स्वयं की धारा का स्थान परिवर्तित करती रही है, मगर गोवर्धन आज भी स्वयं अपने वास्तविक स्थान पर ही स्थित है। इसी वजह से इसको प्रभु श्री कृष्ण का स्वरूप समझकर आज भी दीपावली के दूसरे दिन पूजा जाता है।
दोस्तों आशा करता हूं आप को गोवर्धन पूजा से रिलेटेड सारी जानकारी इस पोस्ट में मिल गई होगी यदि आपको गोवर्धन पूजा से रिलेटेड और भी तथ्य पता हो तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं हम उनको अपनी इस पोस्ट में सम्मिलित कर देंगे।